भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम तो सागर की / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम तो सागर की लहर नहीं गिनते यारो!
भवसागर की छाती पर यान चलाते हैं।
जो बुझ न सके सदियोंशताब्दियों तक ऐसी
हम स्वाभिमान की शाश्वत आग जलाते हैं॥

जिनको सुनकर संसार मुग्ध हो जाता है
हम ऐसा राग सुनाते, मीड़ लगाते हैं।
निष्प्राण देह में जो भर देते प्राण नये
हम क्रांति शौर्य के ऐसे भाव जगाते हैं॥

सर्वदा नग्न तलवार लिए हम चलते हैं,
मणि स्वर्ण रजत रंजित हम म्यान गलाते हैं।
सर्वोच्च त्याग करने में हमे मजा मिलता,
हम छलते नहीं, छले जाने से पर, कतराते हैं॥

हाँ, बार बार जो हमें चुनौती देता है,
उसका जवाब हम देते उसकी भा षा में।
हम शस्त्र उठाते विश्व शांति के लिए सखे !
नूतन विकास की आशा में, अभिलाषा में॥

जो शौर्य दीप्त वह ही सहिष्णुता हमको प्रिय,
जो शक्ति शून्य उसको अभिशाप समझते हैं।
जो दंडनीय उस पर हम दया नहीं करते,
सत्वर निर्णय लेने में नहीं झिझकते हैं॥