भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम मनुष्य नहीं हैैैं / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
हम मनुष्य नहीं हैैैं
हम मांस हैं
कोमल नवजात झुर्रीदार
रक्त हैं गुनगुना
हम फसलंे हैं
भण्डार भरतीं ,भूख मिटातीं
हम चूल्हा हैं
चूल्हे की लकड़ियाँ हैं
झाडू की सीकें हैं
थूक, गू-मूत साफ करती
हम देवियां हैं
आदर -सम्मान का संशय पाले
हम पतिताएं हैं
अपमानित होने की अधिकारिणी
हम पतिव्रताएं हैं
हम हाथ हैं
होंठ हैं
स्तन हैं
जॉघें हैं
बस हम मनुष्य नहीं हैं।