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हरदम हँसते रहते फूल / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
सूरज की मुस्कानें लेकर
हरदम हँसते रहते फूल।
काँटों में खिलते रहते फूल,
सबसे हँसकर मिलते फूल,
घबड़ा के जीवन के पथ से
कभी नहीं हैं हिलते फूल,
बाधाओं से हैं टकराते
आँधी-अंधड़ सहते फूल।
ऋतु बाहर की लाते फूल,
मिलकर हँसते-गाते फूल,
अपने अच्छेपन के कारण
हरदम सब को भाते फूल,
जो भी आकर हाथ लगाते
कभी नहीं कुछ कहते फूल।
तरह-तरह के न्यारे फूल,
माली के हैं प्यारे फूल,
बगिया के खुशबू की खातिर-
मिट जाते हैं सारे फूल,
तितली, भौरें, मधुमक्खी के
प्रेम सिन्धु में बहते फूल।