भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हरा और पीला / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
Kavita Kosh से
चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन के प्रति स्नेह और श्रद्धा के साथ
फैले हरे पर
क्यों सिमटी पीली रेखा -
मैंने ख़ुद को
तुम्हारी आँखों में देखा |
बाल मैं नहीं हूँ
लहराते धान का खेत में
जो कलगी बन जाऊँ
दृश्य जगत का सेत-मेत में
डंठल हूँ
इधर लेटा, उधर देता हूँ,
चारा हूँ पशुओं का
मत कहो प्रणेता हूँ |