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हरी ए झंजीरी मनरा न पहरूं / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हरी ए झंजीरी मनरा न पहरूं
मनरा हरा ए म्हारा राजा जी का बाग, सुलतानी जी का बाग
मनरा तो मेरी जान चुड़ला तो हात्थी दांत का
काली ए झंजीरी मनरा न पहरूं
मनरा काला ए म्हारा राजा जी का सिर, सुलतानी जी का सिर
मनरा तो मेरी जान चुड़ला तो हात्थी दांत का
धोली ए झंजीरी मनरा न पहरूं
मनरा धोला ए म्हारा राजा जी का दांत, सुलतानी जी का दांत
मनरा तो मेरी जान चुड़ला तो हात्थी दांत का
पीली झंजीरी ए मनरा न पहरूं
मनरा पीला ए म्हारा राजा जी का कापड़ा, सुलतानी जी का कापड़ा
मनरा तो मेरी जान चुड़ला तो हात्थी दांत का
सरबै झंजीरी ए मनरा मैं पहरूं
यो मेरा राजा जी का सर्व सुहाग, सुलतानी जी का सर्व सुहाग
मनरा तो मेरी जान चुड़ला तो हात्थी दांत का