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हर घड़ी सुधार देखकर / आर्य हरीश कोशलपुरी
Kavita Kosh से
हर घड़ी सुधार देखकर
पड़ रही दरार देखकर
थक गई है आँख बेसबब
आपका प्रचार देखकर
डाक्टर मरीज़ हो गए
संक्रमित बुख़ार देखकर
दिल दुखी है मन की बात से
आचरण फ़रार देखकर
आपका ये मापदंड भी
राजभर चमार देखकर
क़िस्म क़िस्म के ये हथकंडे
टूटते गंवार देखकर