भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर बिन जनम गमायो बेबारा / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर बिन जनम गमायो बेबारा।
नहिं सतसंग कियो साधन को फंदा फंद अपारा।
जान-जान गहरो अपर जग भक्तन लगै पियारा।
दुख-सुख गाँठ बाद अपने उर नहिं हो सकत निनयारा।
काल-कर्म दोऊ फिरत सिकारी तिन मिल उदर विहारा।
जैसे बाज लवा पर बीतत सो गत भई संसारा।
दुबदा नदी वही वन भीतर उतर न पावत पारा।
जूड़ीराम नाम बिन चीने बहो खरेरी धारा।।