हर भजन दियो बिसराय हो परे दुहेली मार में।
ग्रेही मोहे काम बस भेख दिखायो खेल।
सार जगत सर हाथ में लिये कुहू कासे लेह।
सीरीं आगी प्रकटहै जरो अकल सिन्सार।
पार न पायो एक को तासों बहो खरेरी पार हो।
जागा सोवत रैन दिन येहो सुन्न भुलानो जीव।
खबर बिसारी अपनी वखत हमारे पावनो।
ज्ञान खर्च बांधे रहो हो दिये शब्द की ढाल।
जूड़ीराम ता दास को कटत बंध को जाल।