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हवा / उत्पल बैनर्जी / मंदाक्रान्ता सेन
Kavita Kosh से
हवा बह रही है
हवा बह रही थी
हवा की वजह से
और तेज़ी से धधक उठी चिता
जल गया सब कुछ
जो कुछ था जलने लायक़
धीरे-धीरे बुझ गई आग
और विलाप भी
खाकर चिता की भस्म
मुँह पोंछ सो गई नदी
कमाल है, तब भी इस कायनात में
बह रही थी हवा ...
जड़बुद्धि, गूँगी-बहरी, अन्धी
माँ-विहीन एक हवा ...
मूल बांगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी