हवा / जेम्स फ़ेंटन
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ये बयार बह चली है
निकली है भुट्टे के खेत से
यहां पर अच्छी ख़ासी भीड़ जमा है
एक भयावह त्रासदी के बाद
नीचे चलने वाली मंद-मद हवा
है आफ़त में
परिवार जनजातीय लोग
राष्ट्र और तमाम जीवित शक्तियां
जिन्होंने कुछ सुना है देखा है
जिसकी कोई उम्मीद हो या ग़लतफ़हमी
जो हवा अपने साथ
ले गई उड़ाकर शिखर को
झाड़यों की क़तार को झुकाती हुई
तहस नहस करती
आग और तलवार की कहानी के साथ
कैसे गुज़र जाते हैं हज़ारों साल
ये बात
मैंने दो पल में देखी हैं
ज़मीन ख़त्म हो गई
भाषाएं बनीं और विभाजित हुईं
ईश्वर पूर्व की ओर चला गया
और अपने को महफ़ूज़ महसूस कर रहा है
उसके भाई को अफ्रीका में
कहीं खोजा गया विचरते हुए झंखाड़ों में
सदियां तो सदियां
कोई पूछ भी सकता है
एक मिनट बाद
कैसे एक तलवार की मूठ
लहरा रही है लोहार के यहां से
और जाने कहां वो गाएंगे-
समंदर के कारोबार की तरह
किसी हंसी-ठहाके के साथ हवा में
ये बयार बह चली है
निकली है भुट्टे के खेत से