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हवा की गंध / नचिकेता
Kavita Kosh से
क्यों नहीं
हमने अभी सूँघी
हवा की गंध
एक क्षण ही
थरथराया जिस्म था
दिन का
चोंच में ले उड़ी चिड़िया
जब नया तिनका
अचीन्हे ही रह गए
अहसास के संबंध
सतह काँपी झील की
या कंपी परछाई
तैरती बतखें नहीं
यह सब समझ पाई
किया बरगद ने
सुबह के साथ था
अनुबंध
ले न पाई धूप-
बारिश अनुभवों से होड़
हम ढलानों पर नहीं
पद चिह्न पाए छोड़
होंठ पर जिनके
लिखी है
प्यार की सौगंध