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हाइकु / ज्योत्स्ना शर्मा
Kavita Kosh से
1
नन्हा बटोही
चला गुनगुनाता
नीले पथ पे।
2
उजली लगी
नन्हें से अधरों पे
बिखरी हँसी।
3
उठे जो नैन
प्रेम भरे मुख पे
फैला आलोक।
4
हुई बावरी
सागर की बाँहों में
सिमटी, मिटी।
5
झुके पहाड़
आँधी में रजकण
चढ़ते शीश।
6
नदी तट पे
अनगिन चिताएँ
ये भी उजाला!
7
चर्चा भी चली
गीत पे पवन के
झूमी जो कली।
8
जीवन-राह
जुगनू से चमके
तेरे दो नैन।
9
नींव मुस्काई
उसने जो घर की
देखी ऊँचाई।
10
नील कमल!
शांत झील ने गाई
मीठी ग़ज़ल।
11
न आँसू तुम
कजरा भी नहीं हो
नैनों में बसे।
12
गिर कर भी
चली तुम्हारी ओर
सागर पिया।