भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 130 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
आभो तो बस
भरम है मन रो
धरती पूज
माटी‘र बीज
जे दोनूं हुवै आछा
फसल आछी
समै तो हुवै
पून रै लैर‘कै ज्यूं
उठ‘र झाल