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हारी नीं है स्त्री री हूंस / मोनिका गौड़

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फेरूं किरच-किरच
हो रैयी है सीता री उम्मीद
फेरूं ठोकरां रुळै
अहल्या रो सत
स्वारथ रै सुग्रीव री
हार रो मोल चुकावै तारा
दो-दो बार माडाणी
कब्जायी जाय’र।
रावण रै दंभ रो रंडापो
उखणन नै मजबूर मंदोदरी
रिश्ता अर फरज री गतागम में
भोगै साव अबोट अेकलापो उर्मिला
फेरूं दांव पर गिरस्थी रै जुअै में द्रोपदी
राज रो ताज माथै मेल’र
छिटकाईज्यो राधा रो प्रेम
भाज जावै
निजू हित रै मिस सिद्धार्थ
जीवण-रण में सूती
एतबार री यशोधरा नैं तज
फेरूं पी रैयी है
ढोंगी मरजाद रो ज्हैर कृष्णा कुमारी
हुवती रैयी है अलोप
विद्रोह री मीरां
सत्ता रै सांवरियै कारणै
अबार भी बाळी जावै
भोळकड़ी रूपकंवर
फरेबी मान-स्यान री अफीम चटा’र
सईकां पछै ई
नीं बदळी भाग री रेख
जकै में मांड्या विधना
बार-बार प्रेम, त्याग, मरजाद, भावना, सम्मान
अर सत्ता रै छळगारै तंदूर में
नैना साहनी दांई
भूंजीजणो
पण हर बार हारती स्त्री
बावड़ै आपरी ई भसम सूं
फिनिक्स पाखी री गत
क्यूंकै
हारी नीं है जुगां-जुगां सूं
स्त्री री हूंस।