भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हासिल क्या जल जाने से / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’
Kavita Kosh से
हासिल क्या जल जाने से
मत पूछो परवाने से
आब, मना कब करता है
जमने से, गल जाने से
इठलाती है नदिया भी
लहरों के बलखाने से
उल्फ़त है तो दुनिया है
कह दो हर दीवाने से
क़द ग़ुरूर का बढ़ता है
क़ीमत के बढ़ जाने से
अपनों से भी बढ़कर हैं
कुछ रिश्ते अन्जाने से