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हिंदोस्तां हमारा / शातिर
Kavita Kosh से
रचनाकार: सन 1930
क्यों हो न हमको प्यारा हिंदोस्तां हमारा,
हम हैं मकीं जो इसके तो यह मकां हमारा।
इल्मो हुनर में आगे सबसे बढ़ा हुआ है,
पीछे रहा किसी से कब कारवां हमारा।
ऐ गुलसितां के तिनको, इतना हमें बता दो,
सैयाद का ये घर है या आशियां हमारा।
धीमे सुरों से गंगा यह गुनगुना रही है,
अमृत से भी है बढ़कर आबे रवां हमारा।
क्यों हम डरें किसी से, क्यों हम दबें किसी से,
पर्वत हिमालिया-सा है पासबां हमारा।
तहज़ीब का हमीं से, सीखा सबक सभी ने,
गुन गा रहा है क्या-क्या, सारा जहां हमारा।
खि़दमत में उनकी ‘शातिर’ अब जां निसार कर दो,
प्यारा वतन हमारा, जन्नत निशां हमारा!