हिरना खोज रहा कस्तूरी
वन - वन में खूब ही भटके
शूल - धूल में मरुथल अटके
बून्द - बून्द पानी को तरसे
अपना थूक गले में गटके
लगा रहा अब जंगल में फेरी
हिरना खोज रहा कस्तूरी
हाल यही तो अपना भी है
जग तो एक सपना भी है
राम विराजें अपने अन्दर
विरथा माला जपना भी है
झूठी है जो मन्दिर में मूरत हेरी
हिरना खोज रहा कस्तूरी