भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हुआ आस का आगमन धीरे-धीरे / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हुआ आस का आगमन धीरे-धीरे
घने तम का होगा हरण धीरे-धीरे

दिशायें है धूमिल कि कुहरा घना है
खुलेगा ये वातावरण धीरे-धीरे

मुखौटे हैं आढे़ कुटिल साजिशों ने
हटाओ सभी आवरण धीरे-धीरे

अनीति कुरीति के गढ़ तोड़ देंगे
सुरीति पगे आचरण धीरे-धीरे

सदा सत्य की जीत होती है आखिर
हुआ झूठ का भी दलन धीरे-धीरे

कठिन रास्तों पर ये ’उर्मिल’ न हारी
किया हर डगर का दलन धीरे-धीरे