भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुआ आस का आगमन धीरे-धीरे / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
हुआ आस का आगमन धीरे-धीरे
घने तम का होगा हरण धीरे-धीरे
दिशायें है धूमिल कि कुहरा घना है
खुलेगा ये वातावरण धीरे-धीरे
मुखौटे हैं आढे़ कुटिल साजिशों ने
हटाओ सभी आवरण धीरे-धीरे
अनीति कुरीति के गढ़ तोड़ देंगे
सुरीति पगे आचरण धीरे-धीरे
सदा सत्य की जीत होती है आखिर
हुआ झूठ का भी दलन धीरे-धीरे
कठिन रास्तों पर ये ’उर्मिल’ न हारी
किया हर डगर का दलन धीरे-धीरे