भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हुए विवेकानन्द / बाबा बैद्यनाथ झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धर्म सनातन के उन्नायक, हुए विवेकानंद।
उनकी महिमा गा पाऊँगा, कैसे मैं मतिमंद॥

विश्वधर्म की महासभा में, पहुँचे थे ये संत,
मनमोहक सम्बोधन भी था, दिव्य आदि से अंत।
विश्व चकित सुन इनका भाषण, हुए सभी अनुरक्त,
बने कई इनके अनुयायी, होकर अति आसक्त।

इनकी वाणी से झड़ता था, शब्द ब्रह्म मकरंद।
उनकी महिमा गा पाऊँगा, कैसे मैं मतिमंद॥

वेद शास्त्र वेदान्त सभी का, लिया उन्होंने सार,
तत्वज्ञान लेकर पौराणिक, करवाया विस्तार।
परम ब्रह्म से इस आत्मा का, क्या है अन्तर्भेद,
नहीं कभी अद्वैत बताता, दोनों का विच्छेद।

इनके मत पर चलने पर ही, छूटेगा भव-फंद।
उनकी महिमा गा पाऊँगा, कैसे मैं मतिमंद॥

सर्वश्रेष्ठ यह धर्म सनातन, सिखलाता परमार्थ।
अर्थ धर्म पुनि काम मोक्ष ही, हैं चारों पुरुषार्थ।
विहित कर्म करते रहिए पर, करें इष्ट का ध्यान।
भाव समर्पण का जब होगा, खुश होंगे भगवान।

ढाल गीत में संत वचन को, प्रस्तुत सरसी छंद।
उनकी महिमा गा पाऊँगा, कैसे मैं मतिमंद॥