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हेमंती साँझ / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
हेमंती सांझ हुई सूनी!
होकर अवधूत-विरत
सोई है भस्मावृत धूनी!
बाघंबर आसमान
अकुलाये साम-गान
कुहरे में अंशुमान डूबा
मंडराते रुंड-झुंड
धूसर चंदन-त्रिपुंड
अभिशापित हवन-कुंड ऊबा
मौन हुई संज्ञाएं
ऋषियों की प्रज्ञाएं ऊनी!
मुरझाये मंत्र-छंद
रिस-रिसकर मंद-मंद
सांसों से अगरु-गंध छूटी
क्षितिजों पर नखत टांक
हंसती है भरी आंख
हिलती है एक पांख टूटी
पथराया अंतराल
सांझ हो गई कराल दूनी!
हर स्वर है विद्ध-हिरन
निर्वासित ज्योति-किरन
अंध-गुफा में उन्मन स्मृतियां
धूमिल-धुंधली श्वेता
अस्तमान हर चेता
तांडव करतीं प्रेताकृतियां
चुभते हैं अंश-अंश
चुप्पी के क्रूर दंश खूनी!