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हे प्राण हमार / चन्द्रदीप पाण्डेय
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धवलऽ धूपलऽ, बहुते अबले, उड़ जा तू हे प्राण हमार,
जिनगी के त देखिये लिहलऽ कर लऽ अब मउअत से प्यार।
ना ले अइलऽ, ना ले जइबऽ, सब कुछ धरती के सिंगार,
घाटा फाटल, सूरुज निकलल, अब का भीड़ लगवलऽ द्वार।
करुण कहानी बा जिनगी के, एमें भरल विषाद अपार
कन कन में बा लोभ समाइल तृष्णा नाचे बारम्बार।
हर परदा का पीछे बाटे, कवनो लमहर भूत सवार,
छम-छम नाचे, पल-पल झाँके, ओकर बाटे भूख अपार।
माता-पिता-पुत्र-वनिता सब, धइले आपन-आपन राह,
केकर के बा, कठिन बतावल, सबके लीला अपरम्पार।
सबका पीछा स्वार्थ समाइल, सबकर मति हो गइल बिमार,
कुसमय पा के मित्र तियगले, दुश्मन कइले पुरहर वार।
जे मंगल भगवान देखवले, उनकर रहे खियाल अपार,
थोडे़ पुजलऽ बहुते पवलऽ, माथ नवावऽ बार हजार।