हे मन मूड़ समझया मत रे।
कर मन परख हरख हर हेरी तज विभिचार पीव गत रत रे।
सरकी जात सरो नहिं कारज भजन बिना नहिं पावत गत रे।
माया मोह जाल भ्रम भारी विन विवेक नहिं आवत सत रे।
जूड़ीराम नाम बिन चीन्हें कोटि जतन कर मिले गुपत रे।
हे मन मूड़ समझया मत रे।
कर मन परख हरख हर हेरी तज विभिचार पीव गत रत रे।
सरकी जात सरो नहिं कारज भजन बिना नहिं पावत गत रे।
माया मोह जाल भ्रम भारी विन विवेक नहिं आवत सत रे।
जूड़ीराम नाम बिन चीन्हें कोटि जतन कर मिले गुपत रे।