भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हे मेरी तुम (कविता) / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
हे मेरी तुम!
बीज (जन्म देने का कारण) कहाँ हमारा?
क्या जानेगा कोई ज्ञाता, पंडित, ज्ञानी!
मैं कहता हूँ;
वह त्रिकाल है, जिसने हमको जन्म दिया है;
और उसी में हम रहते हैं, लय रहते हैं।
जन्म-मरण का कोई कारण और नहीं है॥
रचनाकाल: २५-०३-१९५८