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हे लव हे कुश / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
काननक गाम
कंदराक कक्ष!
ताहि मे-
तोहर कानब के सुनतह?
हे लव हे कुश
उठह उठह आ -
आदि काव्यक एहि करुण कथा केँ
गाबि-गाबि क' सुनवह
समग्र संसार के...
हे वनवासी,
राजाक अत्याचार पर
जनपदक व्यवहार पर
वीरत्वक सम्मानक लेल
क्षेत्रीय उत्थानक लेल
मैथिलीक त्राण लेल
भरथ- रिपुसूदन लेल
लखन विभीषण सं
वालिपुत्र वानरराज वात जातक बाते की!
भीरि जाह वाह!
वाह त्रिभुवनक तातें सं
"मिथिलाक-भागिन"
भगवानो सं भीरि क'
पबैत छैक भिक्ट्री
कहैत छिय' ह'म नहि-नहि
इंडियन एन्सिएंट हिस्ट्री