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हे विहंगिनी / भाग 10 / कुमुद बंसल

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91
जल से पूछा
क्यों प्रलय मचाता?
जीवन-दाता
बन अमृत बिन्दु
हर कण्ठ उतर।

92
माटी से कहा,
मुझे विश्रान्त होना
नींद में सोना
टूटे देह-दीवार
तुझसे मिलनातुर।

93
ज्वाला में जल
लघु-तन शलभ
न दे प्रकाश,
दीप प्रकाश भरे
मिलके बाती साथ।

94
शलभ पाता
ज्योति पे मिटकर
अमर-निधि,
तारे पथ बनाते
दिवस के लिए ही।

95
नयन मूँद,
कमलकक्ष छिपा
सोने को अलि,
जुगुनू-दीप जले
टिमटिमाते पले।

96
पावस-निशा,
जुगुनू व तारों में,
मचा दंगल,
जीते हैं ज्योति-कीट
जो नाशी हर पल।

97
पर्वत, नदी,
खेत, पगडंडियाँ,
पोखर, पेड़,
बसे इनमें प्राण
सदा आते हैं ध्यान।

98
मेरी चिता को
काश दे पाते अग्नि,
भौर, रजनी,
मयूर, गिलहरी,
वाचाल टिटहरी।