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है कोई? / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
है कोई मुझ जैसा अभागा?
बंदी से आता रहा दु:ख बिना नागा!
मैंने जब पुकारा
तब कोई नहीं बोला,
अपनी-अपनी बारी ही
सबने मुँह खोला!
हंस-हंस कह-कहकर, मोती थे चुगवाए
डंडे से भी मारा, घोषित कर कागा!
है कोई मुझ जैसा अभागा?
मैंने जब दुर्भाग्य से कहा,
हाँ हाँ आजा!
उसने कहा, बुलाए पर
नहीं आता मेरे राजा!
जब तू सो जाएगा घोड़ो को बेचकर
तब चिलाऊंगा, चीख-चीख गा-गा!
है कोई मुझ जैसा अभागा?
सोचा है, अब तो बस
चुप ही रहूँगा मैं,
होता है जो, हो ले
कुछ नहीं कहूँगा मैं!
जैसी की तैसी भी धरना हो यदि चादर,
कहाँ-कहाँ सी पाऊँगा, लेकर सुई तागा?
है कोई मुझ जैसा अभागा?