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होंठों पर चांदनी / गुलशन मधुर
Kavita Kosh से
जब ख़ुश नहीं होता
उदास होता हूं
और ऐसे क्षणों में
अपने अधिक पास होता हूं
क्योंकि ख़ुशी
अपने से परे के किसी सुख से जनमती है
खिलते फूल
मुस्कराते चेहरे
भरी जेब
और उन्मद चुम्बन से
पर उदासी का उद्गम मैं स्वयं हूं
वह मुझी से निःसृत होकर
मुझी को पालती है
सन्तान की तरह
मां की तरह
फिर भी
जब कभी उदासी से
ऊब ऊब जाता हूं
सन्तुलन के लिए
होंठों पर चांदनी उगाता हूं