भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होगा कोई / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
					
										
					
					
एक आदमी / झुका-झुका / निराश 
										
										
					
					
					दर्द से कराहता हुआ 
तबाह ज़िन्दगी लिए 
गुज़र गया। 
एक आदमी / झुका-झुका / हताश 
चोट से लहूलुहान 
चीखता हुआ / पनाह माँगता / अभी-अभी 
गुज़र गया। 
	
	