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होना / महमूद दरवेश

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हम यहाँ खड़े हैं । बैठे हैं । यहाँ हैं । अनश्वर यहाँ ।
और हमारा बस एक ही मकसद है :
होना ।

फिर हम हर चीज़ पर असहमत होंगे ;
राष्ट्रध्वज के डिजाइन पर
(बेहतर हो मेरे ज़िन्दा लोगो
अगर तुम चुनो एक भोले गधे का प्रतीक)
और हम नए राष्ट्रगान पर असहमत होंगे
(बेहतर हो अगर तुम चुनो एक गाना कबूतरों के ब्याह का)
और हम असहमत होंगे औरतों के कर्तव्य पर
(बेहतर हो अगर तुम चुनो एक औरत को सुरक्षा-प्रमुख के रूप में)

हम प्रतिशत पर असहमत होंगे, निजी पर और सार्वजनिक पर,
हम हरेक चीज़ पर असहमत होंगे. और हमारा एक ही मकसद होगा :
होना...

उसके बाद मौक़ा मिलता है और मकसद चुनने का ।