होम्यो कविता: डल्कामारा / मनोज झा

सर्दी लगी या रुका पसीना,
देह फूलकर हो गया दूना।
दिन में गर्मी रात में जाडा,
डल्कामारा डल्कामारा॥

खाली पैर चले जो जाव,
दुधिया हुआ या रुका पेशाब।
याद करो बरसाती नारा,
डल्कामारा डल्कामारा॥

गर्दन ऊपर उपभेद का बनना,
पीली भूरी पपडी जमना।
खुजलाने की खूब लगन हो,
फिर तो इसके बाद जलन हो।
गरम सेंक से बढता पारा,
डल्कामारा डल्कामारा॥

बेराइटा कार्ब औ नेट्रम सल्फ
करते इसको काफी हेल्प।
टारपीड कफी और कंठमाला ।
देखो दे दो डल्कामारा॥

के-सी, कै म्फर, इपीकाक,
इसके असर को करता साफ।
सर्दी खांसी बुखार झाडा,
याद करो तब डल्कामारा॥
होम्यो कविता: एण्टिम टार्ट
नाड़ी शिशु छूने नहीं देता,
 घड़घड़ करता है छाती।
 बलगम निकालने में दिक्कत हो,
 होता जब ढीली खाँसी॥
 मिचली और ओकाई के सँग औंघाई रहता है।
बच्चा हरदम गोद में चढकर टहलाने कहता है॥
 नाड़ी तेज पसीना ठंडा, घटता जाए देह का ताप।
 कमजोरी और श्वास कष्ट हो ।
 याद करें तब एण्टिम टार्ट॥

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