होली गीत / 2 / भील
टेक- मचाई बृज में हरी होरी रचाई।
चौक-1 इत से हो आई सुगर राधिका
उत से कृष्ण कन्हाई।
हिलमिल फाग रचिो फागण को,
तो सोभा बरणि न जाई, लालजी ने होरी मचाई,
बृज में हरि होरि रचाई
चौक-2 राधा सेन दियो सखियन को, झुण्ड झुण्ड उठ आई।
लपट झपट गले श्याम सुन्दर के, तो पर्वत पकड़ बनाई।
लालजी ने होरी रचाई।
बृज में हरि होरी रचाई।
चौक-3 छीन लीनी रे वाकि मोर मुरलिया, सिर चूनर ओढ़ाई।
बिन्दी जो भाल नयन बिच कजरा।
तो नथ बेसर पेराई
कृष्णजी नार बणाई,
बृज में हरि होरी रचाई।
चौक-4 करि गई तेरि मोर मुरलिया, कां रे गई चतुराई,
कां रे गया तेरा नन्द बाबाजी, तो कांहां जसोदा माई
लालजि ने लेवे छोड़ाई
बृज में हरि होरी रचाई।
छाप- धन गोकल धन-धन बृन्दावन धन हो जसोदा माई।
धन मयती नर सहया न स्वामी, तो मांगू ते बेऊ कर जोड़ी
सदा रंग रऊंगा तुमारी,
बृज में हरि होरी रचाई।
चौक-5 तो घणा रे दिवस ना दही दुद खादा, तुम बिन चोर न कोई
लेत कसर सब दिन की चुकाऊँ
हे तुम बिन चोर न कोई ददी मेरो माखन खाई
बृज में हरि होरी रचाई।
छाप- धन गोकल धन-धन बिन्द्राबन, धन हो जसोदा माई,
धन मयता नरसइया नू स्वामी
चौक-6 बाजत ताल मिरदंग झांजर डफ मर्जुग धुन न्यारी।
चवां रे चवां चंदन आरो पिया, तो रंग का उड़त फवारा,
मानो रे जैसे बादल छाई, बृज में हरि होरी रचाई।
- बृज में श्रीकृष्ण ने होली रचाई और धूम मचा दी। इधर से राधिका आई और उधर से कृष्ण आये। दोनों ने मिलकर होली का फाग रचा (फाल्गुन मास का फाग रचा) तो उस शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। लालजी (श्रीकृष्ण) ने होली रचाई।
राधा ने सखियों को आँखों से इशारा किया तो होली खेलने के लिए सखियाँ उठकर झुण्ड के झुण्ड में आ गईं। श्रीकृष्ण के गले लिपट गईं और पर्वत के समान कसकर मजबूती से पकड़ा। श्रीकृष्ण ने होली रचाई।
राधिका और सखियों ने मुनकी, मुरली और सिर का मोर मुकुट छीन लिया और उनके सिर पर चूनरी ओढ़ा दी। ललाट पर बिन्दी और नयनों के बीच काजल लगाकर नाक में नथ पहना दी और श्रीकृष्ण को औरत बना दिया। फिर गोपियाँ कृष्ण से पूछती हैं कि कहाँ गया तुम्हारा मोर मुकुट और मुरली? तेरे नंदबाबा और जसोदा माता कहाँ गये? वे आकर आपको छुड़ा लें। गोकुल धन्य है। वृन्दावन धन्य-धन्य है। यशोदा माता धन्य है।
गोकुल और वृन्दावन धन्य हैं। यशोदा माता धन्य है। नरसिंह मेहता के स्वामी श्रीकृष्ण धन्य हैं। मैं दोनों हाथ जोड़कर वर माँगूँ कि आप सदैव साथ रहें। हरि ने ब्रज में होली रचाई।
आपने बहुत दिनों तक दूध-दही चुराकर खाया। आपके अलावा कोई दूसरा चोर नहीं है। आज सब दिन की कसर निकाल लेंगे। मेरा दही और माखन खूब खाया है। गोकुल, वृन्दावन, यशोदा माता और नरसिंह मेहता के स्वामी श्रीकृष्ण धन्य हों।
मृदंग ताल, झाँझ, डफ बज रही है। मर्जुन की धुन का क्या कहना, उसकी धुन निराली ही है। प्रत्येक चौक में चंदन आरोपित किए हैं और फव्वारों से रंग की फुहारें उड़ रही हैं, मानो जैसे बादल छाये हुए हांे। ब्रज में हरि ने होली रचाई है।