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ॠण उधार / गिरिधर
Kavita Kosh से
झूठा मीठे वचन कहि, ॠण उधार ले जाय ।
लेत परम सुख उपजै, लैके दियो न जाय ॥
लैके दियो न जाय, ऊँच अरु नीच बतावै ।
ॠण उधार की रीति, मांगते मारन धावै ॥
कह गिरिधर कविराय, जानी रह मन में रूठा।
बहुत दिना हो जाय, कहै तेरो कागज झूठा ॥