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‘आकाशवाणी’ के स्वर / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
मेरा मन ही तो सारे ब्रह्माण्डों का विस्तार है
मेरी करूणा ही हिम-शिखरों का झलमल गल-हार है
सबकी पीड़ा, मेरी पीड़ा
सब की व्रीड़ा, मेरी व्रीड़ा
मेरी हर थिरकन पर बनता-मिटता यह संसार है
तुम पूछ रहे हो मेरा परिचय
तुम तो खुद हो मेरा परिचय
मेरी से साँसें अखिल-निखिल इस त्रिभुवन का आधार हैं
सब एक, अनेक नहीं कुछ भी
भूगोल, खगोल नहीं कुछ भी
मेरी यह हल्की-सी स्मिति ही अग-जग का श्रृंगार है
मेरे स्वर का आरोह और अवरोह जलधि का ज्वार है
मेरा चिन्तन, मेरी अर्चा-चर्चा से बेड़ा पार है