भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

120 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रांझे पीरां नूं बहुत खुशहाल कीता दुआ दितियां ने जाह हीर तेरी
तेरे सब मकसूद<ref>मनोरथ</ref> हो गए हासल मदद हो गए पंजे पीर तेरी
जाह गूंज तूं विच मगवाड़<ref>चरांद</ref> बैठा बखशी गई है सब तकसीर<ref>कुसूर</ref> तेरी
वारस शाह मियां पीरां कामलां<ref>पहुँचे हुए पीर</ref> ने कर छडी है नेक तकदीर तेरी

शब्दार्थ
<references/>