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15 अगस्त / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय

बासी भात खाके भागे भागे पहुँचे
ठेकेदार न इंजिनीर था
दो तीन और मजूर बीड़ी फूँक रहे थे
दो एक ताड़ी पीके मस्ताते थे

ठेकेदार बोला — आज १५ अगस्त है
गांधी बाबा ने आजादी करवाई है आज
आज परब मनेगा आज त्योहार मनेगा
आज खुशी की छुट्टी होगी
आज काम न होगा

गाँठ में बँधा था सत्रह रूपैया
घर के भाण्डे खाली
‘बाऊजी अदबांस दे दो कल की पगार
रोटी को हो जाए इतना दे दो
कुछ काम करा लो, लाओ, तुम्हारा पानी भर दूँ
लाओ, तुम्हारा चिकन बना दूँ
लाओ, रोटी सेंक दूँ’
— डरते डरते बोली मैं तो वो बोला —

‘भाग, छिनाल,
रोज माँगने ठाढ़ी हो जाती है माथे पे
आजादी आज त्योहार है
खुशी की बात हो गई
ये मंगती भीख माँगने हमेशा आ जाती है
जा जाके त्योहार मना
गांधीबाबा ने आजादी जो करवाई है
उनको जाके पूज गँवार दारी’

सत्रह रुपए खरचके
मैंने आजादी का परब मनाया

सुना है, दूर दिल्ली में नई लिस्ट आई है
सत्रह रूपैया जिनकी गाँठ है
उनको सेठ ठहराया है

सेठानी जी, ओ दोपदी !
तुमने सत्रह रुपए का आटा नोन लेके
गजब मनाई आजादी ।