भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
280 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
अजड़<ref>झुंड</ref> चारना कम पैगम्बरां दा केहा अमल शैतान दा रोलयो ई
भेडां चारके तोहमतां जोड़ना ए क्यों गजब फकीर ते खोलयो ई
वाही छड के खोलियां चारियां नी होयों जोगीड़ा जीऊना ठोलयो ई
सच मन के पिछांह मुड़ जा जटा केहा कूड़ दा फोलना फोलयो ई
वारस शाह एह उमर नित कर जाया<ref>बरबाद</ref> शकर विच प्याज क्यों घोलयो ई
शब्दार्थ
<references/>