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345 / हीर / वारिस शाह

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रन्न वेखना ऐब है अन्नयां नूं रब्ब अखियां दितियां वेखने नूं
सब खलक<ref>सृष्टि</ref> दा वेख के लौ मुजरा<ref>नज़ारा</ref> करो दीद इस जग दे पेखने नूं
महांदेव जहे पारब्बती अगे काम लयांवदा सी मथा टेकने नूं
रावन राजयां सिरां दे दाअ लाये जरा जायके अखियां सेकने नूं
सब दीद मुआफ है आशकां नूं रब्ब यन दिते जग देखने नूं
अजराईल हथ कलम लै वेखदा ए तेरा नाम इस जग तों छेकने नूं

शब्दार्थ
<references/>