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393 / हीर / वारिस शाह

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हाय हाय फकीर दे नाल बोले बुरे सहतिये तेरे अपौड़<ref>बंजर ज़मीन</ref> होए
जिन्हां नाल फकीर दे अड़ी बधी सने माल ते जान दे चैड़ होए
मन पाटयां नाल किस जिद बधी पस पेश<ref>बहाना</ref> थी अत नूं दौड़ होए
रहे औंत नखसमी रन्न सुन्नी जेहड़ी नाल पलंगां दे कौड़ होए
एहो जेहयां नूं छोड़ीए मूल नाहीं जानां इशक ते फकर दे दौर होए
वारस शाह लड़ाई दा मूल बोलन वेखो दोहां दे ओढ़ ते पौड़ होए

शब्दार्थ
<references/>