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413 / हीर / वारिस शाह

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सहती हो गुसे चा खैर पाया जोगी वेखदयां ही तुरत रज पया
मुंहों आखदा रोह दे नाल यारो कटक खेड़यां दे भावें अज पया
एह लै मकरियां ठकरियां रावला वे काहे वाचना एं ऐडा कुचज पया
ठूठे विच सहती चीना घत दिता जोगी दे कालजे वज फट पया
हथों छड जंबील<ref>चमड़े का प्याला</ref> चां जिमी मारे चीना डुल गया ठूठा भज पया
वारस शाह शराब खराब होया शीशा संग<ref>पत्थर</ref> ते वज के भज पया

शब्दार्थ
<references/>