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451 / हीर / वारिस शाह

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जिस मरद नूं शरम न होवे गैरत उस मरद तों चंगियां तीवियां ने
घर सदा ई औरतां नाल सोंहदा शरमवंदते तरदियां बीवियां ने
इक हाल थी मस्त घरबार अदर इक हार शिंगार विच खीवियां ने
वारस हया<ref>शर्म</ref> दी पहन चादर अखों नाल जमीन दे सीवियां<ref>गड़ जाना</ref> ने

शब्दार्थ
<references/>