भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
45 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
रांझा मिन्नतां करके थक रिहा अंत हो कंडे परां जा बैठा
छड अग बेगानड़ी हो गोशे<ref>किनारे</ref> प्रेम ढांडरी<ref>धूनी</ref> वख जगा बैठा
गावे सद<ref>हाँक वाले गीत</ref> फिराक दे नाल रोवे अते वंझली शबर वजा बैठा
जो कोई आदमी त्रीमत मरद हैसन पतन छोड़ सभा ओथे जा बैठा
रन्नां लुडन झबेल दीयां भरन मुठी पैर दोहां दे विच टिका बैठा
गुसा खाइके लए झबेल झइयां एह दोहा इक बना बैठा
पिडा बाहुड़ीं जट लजाग रन्ना केहा शुगल तूं आन मचा बैठा
वारस शाह इस मोहियां मरद रन्नां नहीं जाणदे कौन बला बैठा
शब्दार्थ
<references/>