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483 / हीर / वारिस शाह

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अगों रायबां<ref>शक करना</ref> शैरफां <ref>खोटा-खरा परखने वाला</ref> बोलियां ने केहा मथा तूं भाबीए खेड़या ई
भाबी आख की लघो ई टहक आईए सोयन-चिड़ी वांगू रंग फेरया ई
मोई गई सै जीवदी आन वड़िए सच आख की सच सहेड़या ई
अज रंग तेरा भला नजर आया सभो सुख ते दुख नवेड़या ई
नैना शोख होए रंग चमक आया किसे जोबनेदा खूह गेड़या ई
हाथी मसत आशक भावे बाग वाला तेरी संगली नाल खहेड़या ई
कदम चुसत ते साफ कनौतियां ने हथ चाबक<ref>चालाक</ref> असवार न फेरया ई
वारस शाह अज हुसन मैदान चढ़ के घोड़ा शाहसवार ने छेड़या ई

शब्दार्थ
<references/>