भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

486 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिवे सोहने आदमी फिरन बाहर किचरक दौलतां रहन छपाइयां नी
अज भावें तां बाग विच ईद होई खाधियां भुखयां ने मठीआइयां नी
अज कइयां दे दिलां दी आस पुजी जम जम जान बागो भरजाइयां नी
वसें बाग जुगां ताईं सने भाबी जियें खान फकीर मलाइयां नी
खाक-तोदियां<ref>मिट्टी का ढेर</ref> दे जिथे ढेर वडें तीर-अंदाजां<ref>तीर चलाने वाला</ref> नें तानीयां लाइयां नी
अज जो कोई बाग वीच जा वढ़या मुंहों मगीयां दौलतां पाइयां नी
पानी बाझ सुकी दाडी खेडया दी मुन्न कढी है ढोहा नाइयां नी
सयाह भौर होइयां चशमां<ref>आंखें</ref> पयारयां दियां भरपूर पौंदे रहे सलाइयां नी
अज आब<ref>चमक</ref> चड़ी ओहनां मोतियां नूं जीओ आईए भाबीए आइयां नी
वारस शाह हुन पानियां जोर कीता बहुत खुशी कीती मुरगाइयां नी

शब्दार्थ
<references/>