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5.ज्योति–पर्व है / सुधा गुप्ता
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ज्योति–पर्व है 
मन में उजियारा 
ज्योतित जग सारा 
सत्य विजय 
अनय व असत् का 
जल रहा सर्व है ! 
1 
ज्योति वंदन 
करो अभिनन्दन 
मने आलोक–पर्व 
नूतन वर्ष 
सघन तिमिर का 
कर दो गर्व–खर्व। 
2 
नया वर्ष है 
नव उमंग संग 
पुलक भरा तन 
नया हर्ष है ! 
नूतन है निष्कर्ष 
लो, छूटा विमर्श है ! 
3 
छोड़ पुराना 
गहो नवल, मन ! 
बिसरा कर तम 
केंचुल त्यागो 
जीर्ण–शीर्ण हो गई 
राह बुलाती नई। 
4 
कभी पुरानी
प्रकृति न पड़ती 
नित नव शृंगार ,
कभी न बैठो 
झोली में तुम भर 
निराशा के  अंगार ! 
5 
चाह अजानी 
औचक ही छू गई 
बीज नया बो गई 
नई कहानी 
हर बच्चे के  साथ 
हो क़लम सुहानी। 
6 
हाथ से छूटे 
कचरा टटोलता 
टाट का लम्बा बोरा 
साफ़–सुथरा 
रोटी की चिन्ता मुक्त 
स्कूल जाये वो बच्चा। 
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