भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

520 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दंद मीट घसीट के हड गोडेरो रो करे जारी बुरे हीलियां नी
नक चाढ़ दंदीकड़ा<ref>दांत पीसने</ref> वट रोवे कढ अखियां नीलियां पीलियां नी
थराथर कवे आखे मोई लोको कोई करे झाड़ा बुरे हीलियां नी
मेरे लिंग ते पैर बेसुरत होई पाव जीवने काज<ref>कैंची कतरनी</ref> कलीलियां<ref>कमज़ोर</ref> नी
वारस शाह शतूंगड़े हथ जोड़न सहती गुरु ते असीं सब चेलियां नी

शब्दार्थ
<references/>