भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
533 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
जोगी कील घती परे विच चैंकी छुरी ओसदे विच खुभाइया सू
खाह कसम कुरान दी बैठ जट कसम चोर नू चा कराइया सू
ओहदे नाल तूं नाहियों अंग लाया छुरी पट के धौन रखाइया सू
फड़या हुसन दे माल दा चोर साबत ताए ओसनूं कसम खवाइया सू
वारस शाह रब्ब तूं छड पया झंजट ऐवे राइगां उमर गवाइया सू
शब्दार्थ
<references/>