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545 / हीर / वारिस शाह
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जोगी आखया फिरे न मरद औरत पवे किसे दा नहीं परछावना ओए
करां बैठ नवेकला जगत गोशे कोई नहीं जे छिंज<ref>झगड़ा</ref> पवावना ओए
कन सन<ref>चुप-चाप</ref> विच बहुटड़ी<ref>पत्नी</ref> आन फाथी नाही सहम ते शोर करावना ओए
हको आदमी आवना मिले साथे औखा सप दा रो गवावना ओए
कुआरी कुड़ी दा रख विच पैर पाईए नाहीं होर किसे एथे आवना ओए
सप्प नस जाए छाल मार जाए खरा औखड़ा छिला<ref>चालीस दिन जाप करना</ref> कमावना ओए
लिखया सत सैवार कुरान अंदर नहीं छड नमाज पछतावना ओए
वारस शाह कोई दिन बंदगी कर मुड़ वत ना जग ते आवना ओए
शब्दार्थ
<references/>