भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
58 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
उठीं सुतया सेज असाडड़ी तों लम्मा सुसरी वांग की पया हैं वे
राती किते उनींदरा कटो ई ऐडी नींद वाला लुड़ गया हैं वे
सुन्नी देख नखसमड़ी सेज मेरी कोई आलकी आन ढह पया हैं वे
इके ताप चढ़या जिन्न भूत लगे इके डैण किसे भख लया हैं वे
वारस शाह तूं जींवदा घूक सुत्तों इके मौत आई मर गया हैं वे
शब्दार्थ
<references/>