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आर्त ध्वनि / केतन यादव

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इतनी जोर से मत बोलो
कि बहुत सारी आवाज़ें दब जाएँ
बल्कि इतनी जोर से सुनो
कि बहुत सारी चुप्पियाँ बोल उठें।