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इच्छा / संतोष श्रीवास्तव

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हर रात इच्छा
सिरहाने आ बैठती है
पूरे दिन का हिसाब मांगने
मैं अपनी चोटों का
हिसाब कैसे दूं

यह कि इच्छा नहीं होने पर भी
मुझे निभाने पड़े थे रिश्ते
इच्छा नहीं होने पर भी
झुकना पड़ा था
प्रतिकूलता के आगे

देखती हूँ
इच्छा नहीं होने पर भी
फूल सह जाते हैं
भँवरों के नुकीले दंश
इच्छा नहीं होने पर भी
मिट्टी को नष्ट करना पड़ता है
कमज़ोर बीजों को
इच्छा नहीं होने पर भी
मेघों को बरसना होता है
कीचड़ पर भी

इच्छा इच्छाशक्ति बन
करा लेती है वह सब
जिसे करने की चाह
हो या न हो

इच्छा ने मुस्कुराते हुए
मेरी नीमबंद आंखों में झांका
कल तुम फिर इन्हीं
अनिच्छाओं पर
अपनी इच्छाशक्ति से
पार पा लोगी
उसने मेरी पलके मूँदी
और करने लगी
भोर की प्रतीक्षा